भारत और भांग


भारत और भांग 

भारत में भांग का इतिहास बहुत ही पुराना रहा है, भारत में लगभग 2000 इसा पूर्व  से भांग की खेती होती रही है | भारत में इसे भांग, चरस और गांजा के नाम से जाना जाता है। भांग, चरस और गांजा एक ही पौधे, cannabis ( भांग का पौधे  ) से ही प्राप्त होते है, 


भांग - भांग के पौधे के पत्ते और फूल को पीस कर बनाया जाता है, और आम तौर पर दूध, या लस्सी में मिला कर पिया जाता है |

चरस - भांग के फूल और पत्ते के रगड़ कर या पीस कर उसमे से जो अर्क या रस निकलता है उसे चरस कहते है, इसका धुआँ पिया जाता है |  

गांजा - भांग के सूखे पत्तो और फूल को कहते है और इसे बीड़ी या सिगरेट में भर कर पिया जाता है | 


भारतीय शास्त्रों में भांग का वर्णन 


पञ्च राज्यानि वीरुधां सोमश्रेष्ठानि ब्रूमः।

दर्भो भङ्गो यवः सह ते नो मुञ्चन्त्व् अंहसः॥ (अथर्ववेद 11.6. 5 )


सोम जो पेड़ पौधों के राज्य पर राज करता है, वो कहते है , दूर्वा, भाँग,जौ, विशाल शक्ति हमें हमारे दुखो से निजात दिलाये | 

शुश्रुत संहिता ( 600 इ पू ) में इसका वर्णन एक दवा के रूप ने किया गया है जो दस्त और कफ जनित रोगो से मुक्ति देता है |  

चिकित्सा सार संग्रह ( ११वी सदी , वागसेना ), में इसका उल्लेख है , जो भूख बढाता है और पाचन क्रिया तेज करता है | धवंतरि निघण्टु ( ११ वी सदी, नारायण शर्मा ) इसे नशे से जोड़ता है | योगरत्नमाला ( १३ वि सदी, नागार्जुन ) में इसका उपयोग शत्रु पर करने के लिए किया गया है |

सार्ङगधरसंहिता ( १३ वि सदी ,शार्ंगधराचार्य ) में भांग और अफीम  के उपयोग के बारे में दिया गया है , धन्वन्तरि निघण्टु, कैयदेव निघंटु, आदि आयुर्वेद की किताबो में भांग का वर्णन किया गया है | 

भगवान् शिव और भांग 

समुद्र मंथन के समय , समुद्र से बहुत से बहुमूल्य पदार्थ, अश्विनी कुमार, देवी लक्ष्मी , कामधेनु, ऐरावत ,  आदि निकले थे, इन सब के साथ निकला था हलाहल विष , इस विष की कोप से, गर्मी से सारा ब्रह्माण्ड जलने लगा तो देवता और असुर हलाहल को ले कर भगवान् शिव के पास ले आये जिसे उन्होंने अपने कंठ में ग्रहण किया ,कहते हैं कि हलाहल विष के सेवन के बाद उनका शरीर नीला पड़ना शुरू हो गया था। तब भगवान शिव का शरीर तपने लगा परंतु फिर भी शिव पूर्णतः शांत थे लेकिन देवताओं और अश्विनी कुमारों ने सेवा भावना से भगवान शिव की तपन को शांत करने के लिए उन्हें जल चढ़ाया और विष का प्रभाव कम करने के लिए विजया (भांग का पौधा), बेलपत्र और धतूरे को दूध में मिलाकर भगवान शिव को औषधि रूप में पिलाया। तभी से लोग भगवान शिव को भांग भी चढ़ाने लगे। 

दूसरी किदवंती इस प्रकार है , कि  समुद्र मंथन से निकले विष की बूंद ,धरती पर जहाँ जहाँ भी गिरी वहां भांग और धतूरे नाम के पौधे उत्पन्न हो गए। जब शिव ने हलाहल  का पान किया तो धरती पर जहाँ जहाँ हलाहक विष गिरा , ठंढी तासीर वाले पौधे , शिव को ठंढक देने के लिए ऊगा दिए , इन पौधों को ले कर धन्वन्तरि शिव के पास गए थे उनकी गर्मी शांत करने के लिए | पहले यह संभवतः हिमालय की पहाड़ियों में ही होता था , फिर गंगा नदी ने इसके बीज , मैदानी इलाको में फैला दिया , अब गंगा, यमुना के मैदानों में यह बहुतायत में पैदा होती  है, इसलिए इसे गंगा की बहन के रूप में भी जाना गया और  भांग को शिव की जटा पर बसी गंगा के बगल में जगह मिली है। 












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